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तद्वो॑ यामि॒ द्रवि॑णं सद्यऊतयो॒ येना॒ स्व१॒॑र्ण त॒तना॑म॒ नॄँर॒भि। इ॒दं सु मे॑ मरुतो हर्यता॒ वचो॒ यस्य॒ तरे॑म॒ तर॑सा श॒तं हिमाः॑ ॥१५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tad vo yāmi draviṇaṁ sadyaūtayo yenā svar ṇa tatanāma nṝm̐r abhi | idaṁ su me maruto haryatā vaco yasya tarema tarasā śataṁ himāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। वः॒। या॒मि॒। द्रविण॑म्। स॒द्यः॒ऽऊ॒त॒यः॒। येन॑। स्वः॑। न। त॒तना॑म। नॄन्। अ॒भि। इ॒दम्। सु। मे॒। म॒रु॒तः॒। ह॒र्य॒त॒। वचः॑। यस्य॑। तरे॑म। तर॑सा। श॒तम्। हिमाः ॥१५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:54» मन्त्र:15 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:16» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सद्यऊतयः) शीघ्र रक्षण आदिवाले (मरुतः) मनुष्यो (वः) आप लोगों के समीप से जिस (द्रविणम्) धन वा यश को (यामि) प्राप्त होता हूँ (तत्) उसको आप लोग दीजिये (येना) जिससे (स्वः) सुख के (न) सदृश (नॄन्) मनुष्यों को (अभि, ततनाम) सब प्रकार विस्तृत करें और आप लोग (इदम्) इस (मे) मेरे (वचः) वचन की (सु, हर्यता) अच्छे प्रकार कामना करिये और (यस्य) जिसके (तरसा) बल से हम लोग (शतम्) सौ (हिमाः) वर्ष (तरेम) पार होवें, उससे आप लोग भी पार हूजिये ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! आप लोग यश, धन, सुख, सत्य, वचन और बल को बढ़ाय दुःखों के पार हूजिये ॥१५॥ इस सूक्त में बिजुली और सुख के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चौवनवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सद्यऊतयो मरुतो ! वो यद्द्रविणमहं यामि तद्यूयं प्रयच्छत येना स्वर्ण नॄनभि ततनाम यूयमिदं मे वचो सु हर्यत यस्य तरसा वयं शतं हिमास्तरेम तेन यूयममि तरत ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) (वः) युष्माकं सकाशात् (यामि) प्राप्नोमि (द्रविणम्) धनं यशो वा (सद्यऊतयः) क्षिप्राणि रक्षणादीनि येषां ते (येना) (स्वः) सुखम् (न) इव (ततनाम) विस्तीर्णीयाम (नॄन्) मनुष्यान् (अभि) (इदम्) (सु) (मे) (मरुतः) मनुष्याः (हर्यता) कामयध्वम् (वचः) वचनम् (यस्य) (तरेम) (तरसा) बलेन (निघं०२.९) (शतम्) (हिमाः) वर्षाणि ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! भवन्तो यशो धनं सुखं सत्यं वचो बलं च वर्धयित्वा दुःखानि तरन्त्विति ॥१५॥ अत्र सूर्यविद्युन्सुखगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुःपञ्चाशत्तमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! तुम्ही यश, धन, सुख, सत्यवचन व बल वाढवून दुःखातून पार पडा. ॥ १५ ॥